New education policy: नए छात्र NEP से न घबराएं इसलिए दुर्ग जिला प्रशासन के सहयोग से प्रोफेसर्स को मिलेगा प्रशिक्षण

भिलाई . साइंस कॉलेज दुर्ग में शुक्रवार को मेंटल हेल्थ एंड इनोशनल इंटेलिजेंस विषय पर कार्यशाला कराई गई। यह कार्यक्रम दुर्ग जिला प्रशासन, अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा दुर्ग के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में युवाओं की मन: स्थिति को समझने और नवीन सत्र से लागू एनईपी से संबंधित विद्यार्थियों के संशय का समाधान मानसिक स्तर पर किए जाने के लिए किया गया। उनकी भावनाओं को समझ कर उससे उबरने के लिए प्राध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाना था, साथ ही युवा पीढ़ी को विभिन्न प्रकार के अवसादों की स्थिति से उबराना और उन्हें कठिन परिस्थितियों में अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखकर आगे बढऩे में सहयोग करना है।

मेडिटेशन को अपनाएं युवा

मुख्य अतिथि के रूप में दुर्ग संभागायुक्त सत्य नारायण राठौर की मौजूदगी रही। वहीं अपर संचालक डॉ. राजेश पांडेय, एसडीएम अरविंद एक्का और साइंस कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ. एसएन झा उपस्थित रहे। इस कार्यशाला का आयोजन दुर्ग कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी के मार्गदर्शन में किया गया। संभागायुक्त ने कहा कि, वास्तव में दिमाग और शरीर का सामंजस्य न होना ही तनाव है। इस तनाव को मेडिटेशन एवं योगा से बेहतर किया जा सकता है। जीवित और मृत के बीच केवल श्वास का अंतर होता है। और इसी श्वास को नियंत्रण में रखकर हम अपनी शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित कर सकते है। उन्होंने डबल स्लिट थ्योरी के उदाहरण से बताया कि चीजों को देखने के हमारे नजरिए से चीजें हमें अलग-अलग दिखाई दे सकती है, इसीलिए हमें अपना नजरिया सकारात्मक रखना चाहिए।

युवा पीढ़ी में असीम संभावनाएं

अपर संचालक पांडेय ने कहा कि वर्तमान में युवा पीढ़ी के पास असीम क्षमताए हैं। उन्हें कौशल निर्माण से सुसज्जित, वर्तमान सत्र से लागू एनईपी-2020 से और डेवलप किया जाएगा। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता नितिन श्रीवास्तव मनोवैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सक ने बहुत ही रोचक तरीके से प्राध्यापकों को विभिन्न पीढिय़ों के विद्यार्थियों की समस्याओं एवं उन्हें होने वाले मानसिक तनावों के संबंध में जानकारी दी। कहा कि मनुष्य में सभी प्रकार की भावनाएं प्राकृतिक रूप से उपस्थित होती है और यह मानव जीवन के लिए जरूरी भी है। हमें किसी भी प्रकार के अवसाद की स्थिति में आने पर या किसी अवसाद से ग्रसित व्यक्ति को इस परिस्थिति से उबारने के लिए सामाजिक अवहेलनाओं की चिंता न करते हुए मनोचिकित्सक की सेवाएं लेनी चाहिए। कार्यशाला में डॉ. अनुपमा अस्थाना, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. अजय सिंह, डॉ. एसडी देशमुख, डॉ. के.पद्मावती, डॉ. सीतेश्वरी चंद्राकर, डॉ. अंशुमाला, डॉ. तरूण साहू, लक्ष्मेन्द्र कुलदीप, डॉ. मोतीराम साहू, डॉ. विकास स्वर्णकार एवं डॉ. ममता परगनिहा का सहयोग रहा।