पिता ने किया सोती हुई 13 साल की बेटी का रेप, हाइमन सील हालिया टूटने के संकेत की पुष्टि की बाद हाईकोर्ट ने सुनाई 20 साल की सजा

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग बेटी से दुष्कर्म के मामले में दोषी पिता की आजीवन कारावास की सजा को 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया है। अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुये कहा कि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए मूल सजा अत्यधिक कठोर थी।

न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। यह मामला 38 वर्षीय दोषी द्वारा दायर अपील पर आधारित था, जिसमें उसने बैकुंठपुर के विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) के 19 सितंबर 2019 के फैसले को चुनौती दी थी।

क्या था पूरा मामला

निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376(3) के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

घटना 5 दिसंबर 2018 की है, जब 13 वर्षीय पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसके पिता ने सोते समय उसका यौन शोषण किया। पीड़िता ने पांच दिन बाद एक रिश्तेदार को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद 20 दिसंबर 2018 को प्राथमिकी दर्ज की गई।

अभियोजन पक्ष ने आठ गवाहों की जांच की

अभियोजन पक्ष ने आठ गवाहों की जांच की। पीड़िता ने अपनी गवाही में बताया कि दुष्कर्म के बाद उसे दर्द और रक्तस्राव हुआ। उसने यह भी कहा कि उसके पिता ने उसे धमकी दी थी कि वह इस घटना का जिक्र किसी से न करे।मेडिकल जांच करने वाली डॉ. आयुष्री राय ने पीड़िता के हाइमन में हालिया टूटने के संकेत पाए, जो अभियोजन के दावे को मजबूत करते हैं। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि प्राथमिकी दर्ज करने में 15 दिन की देरी थी और मेडिकल साक्ष्य में कोई बाहरी चोट नहीं मिली, जिससे अभियोजन का दावा कमजोर होता है।

सामाजिक कलंक के कारण देरी

हाई कोर्ट ने साक्ष्यों की समीक्षा के बाद कहा कि यौन शोषण के मामलों में सामाजिक कलंक के कारण देरी स्वाभाविक है। अदालत ने पाया कि पीड़िता की गवाही प्राथमिकी से लेकर जिरह तक लगातार विश्वसनीय रही। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वास उत्पन्न करती है, तो केवल उसी के आधार पर दोषसिद्धि हो सकती है। खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने अपना मामला संदेह से परे साबित किया और निचली अदालत का दोषी ठहराने का फैसला सही था।

क्यों कम की गई सजा

हालांकि, सजा के मामले में, हाई कोर्ट ने खेमचंद रोहरा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के एक समान मामले का उल्लेख करते हुए आजीवन कारावास को अत्यधिक कठोर माना। इसलिए, सजा को 20 साल के कठोर कारावास में कम कर दिया गया, जबकि एक लाख रुपये का जुर्माना बरकरार रखा गया।