CG Prime News@जगदलपुर. A former DRG soldier who lost a leg in an IED blast wins a gold medal baster olympic 2025 बस्तर ओलंपिक में नक्सलियों से लोहा लेकर एक पैर गंवाने वाले डीआरजी के पूर्व जवान ने गोल्ड मेडल जीता है। ये कहानी है गिरकर उठने और कुछ कर गुजरने की चाहत की सोच रखने वाले बहादुर जवान किशन कुमार हप्का की। जिन्होंने नक्सलियों के लगाए आईइडी ब्लास्ट में जख्मी होकर पैरे खाने के बाद भी अपना साहस टूटने नहीं दिया। तीरंदाजी खेल में गजब का प्रदर्शन कर सबको हैरान कर दिया।

IED ब्लास्ट में एक पैर खोने वाले DRG के पूर्व जवान ने जीता गोल्ड मेडल
खेल को बनाया जीवन का उद्देश्य
बीजापुर जिले के छोटे से गांव छोटे तुमदार (भैरमगढ़) के 27 वर्षीय किशन कुमार हप्का ने साबित कर दिया है कि सच्चा खिलाड़ी परिस्थितियों से नहीं, अपने हौसले से पहचाना जाता है। कभी डीआरजी के जांबाज जवान रहे किशन को वर्ष 18 जुलाई 2024 में नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी विस्फोट की चपेट में आकर अपना एक पैर खोना पड़ा था। हादसा इतना बड़ा था कि कोई भी सामान्य इंसान हार मान ले, लेकिन किशन की सोच ने उनके लिए नया रास्ता तैयार कर दिया। उसने बस्तर ओलंपिक में तीरंदाजी खेल में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का फ़ैसला किया।
पहले स्थान पर रहे किशन
शरीर ने साथ छोड़ा, पर दिल में खेलने का जुनून और देश सेवा की भावना आज भी उतनी ही मजबूत है। यही जुनून उन्हें फिर से मैदान में ले आया। अपने साहस से लड़ते हुए किशन ने न सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि बस्तर ओलंपिक के जिला स्तरीय खेलों में चयनित होकर संभाग स्तरीय प्रतियोगिता तक पहुंचने का इतिहास रच दिया। किशन ने संभाग स्तरीय प्रतियोगिता में पहला स्थान कर अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया ।
कोच ने सिखाया अपंगता शरीर की होती है मन की नहीं
हादसे के बाद एक समय ऐसा भी आया जब किशन ने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन उनके भीतर का खिलाड़ी हार मानने को तैयार नहीं था। खेल के प्रति प्रेम और अंदर छिपी आग ने उन्हें दोबारा खड़ा कर दिया। किशन अपने कोच दुर्गेश प्रताप सिंह को अपना मार्गदर्शक और प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। वे कहते हैं कोच दुर्गेश ने मुझे सिर्फ खेल नहीं सिखाया, बल्कि यह भरोसा भी दिलाया कि अपंगता शरीर की होती है, मन की नहीं।
बस्तर के लिए बने प्रेरणा
भैरमगढ़ ब्लॉक के छोटे तुमनार जैसे दूरस्थ गांव से निकलकर किशन आज पूरे बस्तर के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उनका संघर्ष हजारों युवाओं के लिए यह संदेश है कि मुश्किलें चाहे कितनी ही बड़ी हों, पर हौसला उससे हमेशा बड़ा होना चाहिए। किशन की यह उपलब्धि न सिर्फ उनके परिवार, बल्कि पूरे बीजापुर जिले के लिए गर्व का क्षण है।