नेटवर्क Pushpa: The Rise की तर्ज पर काम
भिलाई. दुर्ग जिले के धमधा और पाटन डिवीजन में प्रतिबंधित कौहा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई थमने का नाम नहीं ले रही है। किसानों को पैसों का लालच देकर वृक्षों का सौदा कर लिया जाता है और बिना वैध अनुमति लकड़ी माफिया अत्याधुनिक कटिंग मशीनों से मिनटों में पेड़ों को धराशायी कर देते हैं। कटे पेड़ों के गोले (लॉग्स) खेतों में छोड़ दिए जाते हैं, जिन्हें तड़के क्रेन से ट्रकों में लोड कर 50 से अधिक आरामिलों तक पहुंचाया जा रहा है। यह पूरा नेटवर्क Pushpa: The Rise की तर्ज पर काम कर रहा है, जहां सिस्टम की आंखों के सामने गैर-कानूनी कारोबार चलता रहता है।
(Illegal felling of Kauha trees: Formalities completed by seizing a vehicle)
दुर्ग सर्किल के वन विभाग में दो दर्जन से अधिक कर्मचारियों की तैनाती के बावजूद क्षेत्र में न निगरानी सख्त है, न चेक-पोस्ट पर रोक। कार्रवाई को लेकर विभाग के सक्रिय होते ही माफिया ने मिलों से सारा अवैध स्टॉक साफ कर दिया। स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक, जहां विभाग कार्रवाई का आदेश जारी होने पर भ्रमण करता दिखा, उससे पहले ही लकड़ी मिलों की सफाई पूरी हो चुकी थी।
सिर्फ एक गाड़ी पकड़ी, बाकि गाड़िया नजर नहीं आई
विभाग ने रविवार को रेंजर के नेतृत्व में फारेस्ट गार्ड वेद कुमार यादव, श्रीश भट्टा और दिलीप पटेल ने सिर्फ लकड़ी माफिया अलोक तिवारी की एक गाड़ी पकड़ा और वहां से गुजरने वाली अन्य गाड़ियों को रोकने तक की जहमत नहीं उठाई। प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि उसी समय कौहा लकड़ी से लदे 2 से 3 ट्रक सामने से निकल गए, लेकिन विभागीय टीम ने उन्हें न रोका, न ही जांचा की।
लकड़ी माफियाओं का खेल
मिलों की जांच और दस्तावेज़ सत्यापन वन अधिकारियों की जिम्मेदारी है, लेकिन सालाना निरीक्षण तक नहीं किया गया। उतई क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित मशीनों की जांच नहीं की जा रही है। 40-इंच की बड़ी मशीनों से लकड़ी कटाई की जा रही है, जिन्हें विभागीय छापे की भनक लगते ही छोटे आकार की 12-इंच मशीन बताकर ढक दिया जाता है।
कितना पकड़ेगे जी- एसडीओ
एसडीओ से जब सवाल किए गए तो उनके बयानों से जवाबदेही का अभाव साफ झलकता है। गाड़ी नंबर तक की जानकारी न होना और “कितना पकड़ेगे जी” जैसे उत्तर विभागीय सक्रियता पर सवाल खड़ा करते हैं। उन्होंने कहा कि स्टाफ दौरे पर था, मिल जांच का आदेश लिया जाएगा और “कल देखता हूं” कहकर कार्रवाई टाल दी।
संरक्षित कौहा पेड़ों का अस्तित्व ही संकट में
वन विभाग की निष्क्रियता, अवैध कटाई को संरक्षण और आरामिलों से स्टॉक साफ हो जाने की टाइमिंग को लेकर प्रशासन-माफिया गठजोड़ के गंभीर आरोप लग रहे हैं। जिले में पर्यावरणीय संतुलन को गहरा नुकसान पहुंचाने वाली इस अवैध कटाई पर अगर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो संरक्षित कौहा पेड़ों का अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा।