CG Prime News@रायपुर. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हंसी की बारीक परतों में गंभीर बातें कहने वाले छत्तीसगढ़ के पद्मश्री प्रसिद्ध हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे (Padma Shri Dr. Surendra Dubey) को शुक्रवार को अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान जाने माने कवि कुमार विश्वास उन्हें कंधा देने के लिए पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुरेंद्र दुबे का जाना प्रदेश की बड़ी क्षति है, वे छत्तीसगढ़ की बात दमदारी से रखते थे। पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के अंतिम संस्कार में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, गृहमंत्री विजय शर्मा, सांसद संतोष पांडेय सहित कई बड़े नेता, मंत्री और साहित्य जगत के लोग पहुंचे। गुरुवार को दिल का दौरा पडऩे से उनका निधन हो गया। मारवाड़ी श्मशान घाट में आज उनका अंतिम संस्कार किया गया।

एक डॉक्टर, जो कवि बन गया
8 अगस्त 1953 को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा (तब दुर्ग जिले का हिस्सा) में जन्मे डॉ. सुरेन्द्र दुबे पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। उनकी असली पहचान एक ऐसे कवि की थी, जिसकी कलम हंसी की चाशनी में लिपटी व्यंग्य की धार लिए चलती थी। जीवन के गंभीर पहलुओं को भी वे हल्के-फुल्के अंदाज़ में कह जाते, और श्रोताओं को हंसाते-हंसाते सोचने पर मजबूर कर देते थे।
उनकी रचनात्मक शैली ‘काका हाथरसी की परंपरा से जुड़ी थी, मगर उसमें छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सोंधी महक और व्यक्तिगत अनुभवों की गर्माहट साफ झलकती थी। छत्तीसगढ़ी और हिंदी के मंचों पर उन्होंने हास्य कविता को नई पहचान दिलाई। उन्होंने पांच किताबें लिखीं, कई नाटक और टेलीविजन स्क्रिप्ट्स भी रचे।
11 देशों में किया कविता पाठ
1980 में वे पहली बार अमेरिका गए। इसके बाद 11 देशों और अमेरिका के 52 शहरों में उन्होंने कविता पाठ किया। उनकी कविताएं ‘दु के पहाड़ा ल चार बार पढ़, ‘टाइगर अभी जिंदा है, ‘मोदी के आने से फर्क पड़ा है आम बोलचाल में भी दोहराई जाने लगीं। अयोध्या राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के समय उन्होंने कविता लिखी “पांच अगस्त का सूरज राघव को लाने वाला है, राम भक्त जयघोष करो मंदिर बनने वाला है, जो खूब चर्चित हुई। 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। इससे पहले 2008 में उन्हें काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार मिला था।

