गीतों और रंगों के अनूठे संयोजन के साथ 120 कलाकारों ने नारी के मनोभावों को दर्शाया

कृष्ण प्रिया कथा केंद्र की ‘घुंघरुओं का सफर‘ श्रृंखला में हुआ नृत्य नाटिका ‘नायिका’ का मंचन

भिलाई. कृष्ण प्रिया कथा केंद्र दुर्ग भिलाई की ओर से सांस्कृतिक प्रस्तुति ‘घुंघरुओं का सफर‘ श्रृंखला के अंतर्गत नृत्य नाटिका ‘नायिका’ का मंचन 28 जुलाई रविवार की शाम महात्मा गांधी कला मंदिर सिविक सेंटर भिलाई में हुआ। दर्शकों से खचाखच भरे हॉल में कथक शैली में गीत-संगीत के साथ अनूठा नृत्य संयोजन देख लोग वाह-वाह कर उठे। शुरूआत में केंद्र की संचालक उपासना तिवारी ने सभी दर्शकों का अभिनंदन करते हुए अपने केंद्र के अब तक के 29 साल के सफर की उपलब्धियां बताईं। दीप प्रज्ज्वलन डॉ. ममता शुक्ला, डॉ. सुधीर शुक्ला डॉ. आलोक दीक्षित और प्रभंजय चतुर्वेदी ने किया।

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वंदना से शुरुआत हुई और इसके बाद बच्चों ने ‘पुष्पांजलि’ के अंतर्गत कथक की प्रस्तुति भी दी। नृत्य नाटिका ‘नायिका’ में प्राचीनकालीन नाट्यशास्त्र में भरत मुनि द्वारा वर्णित अष्ट नायिकाओं के व्यवहार और प्रकार को मंच पर दर्शाया गया। 10 वर्ष से 24 वर्ष की आयु के 120 कलाकारों ने नारी के मनोभावों और उसके प्रेम के विभिन्न चरणों को पार्श्व में बज रहे गीतों और रंगों के संयोजन के साथ बेहद खूबसूरती से पेश किया।
 इसका लेखन व निर्देशन स्वयं उपासना तिवारी का था। संगीत संयोजन रविंद्र कर्मकार,वी के सुंदरेश संगीत, बिन्नी पॉल मिक्सिंग, सौमेंद्र फड़के, घुंघरू का स्वर जितेंद्र मानिकपुरी, बिंदिया का स्वर उपासना तिवारी, कार्यक्रम समन्वयक डॉक्टर दिव्या राहटगांवकर, सेजल चौधरी, नीलिमा वासनिक, सहयोगी अवनी अग्रवाल, देविका दीक्षित और एलईडी ग्राफिक्स सेजल चौधरी थे।

घुंघरू और बिंदिया के बीच संवाद के साथ गीतों का सामंजस्य

नृत्य नाटिका ‘नायिका’ में कलाकारों ने शास्त्रीय कथानक के साथ गीतों का अनूठा सामंजस्य दर्शकों के सामने पेश किया। कथानक के अनुसार ‘घुंघरू’ और ‘बिंदिया’ के बीच प्रेम को लेकर संवाद होता है। जिसमें ‘घुंघरू’ ईश्वरीय प्रेम में विश्वास रखता है, जबकि ‘बिंदिया’ सांसारिक प्रेम को ही सब कुछ मानती है।
दोनों के बीच परस्पर संवाद होता है। इनके साथ-साथ भरतमुनि द्वारा वर्णित नायिकाएं अपने-अपने स्वरूप में मंच पर आती है। प्रत्येक नायिका की कहानी के साथ गीतों पर नृत्य की प्रस्तुति होती है। इनमें मोसे छल किए जाए, आज जाने की ज़िद न करो, आओ बलमा चौदहवीं शब् को कहाँ चांद कोई खिलता है और इन आँखों की मस्ती के जैसे अनूठे नृत्य संयोजन वाले गीतों को शामिल किया गया था। अंत में ‘घुंघरू’ कहता है कि मैं अनंत प्रेम का उपासक हूं जो सद, चित और आनंद है। इस पर ‘बिंदिया’ सूफी प्रेम की ओर ले जाती हूं। इस दौरान सकल बन फूल रही सरसों गीत के साथ नृत्य नाटिका का समापन होता है।

भरतमुनि की नायिकाओं के इन मनोभावों को किया प्रदर्शित

नृत्य नाटिका ‘नायिका’ में कलाकारों ने नाट्यशास्त्र में भरत मुनि द्वारा वर्णित नायिकाओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जीवंत कर दिया। इनमें वासकसज्जा नायिका अपने प्रिय के लिए श्रृंगार करती है। इससे वह अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करती है। खण्डिता नायिका का नायक परस्त्रीगमन करता है और उसे इसका प्रमाण मिल जाता है, जिससे वह दुखी होकर टूट जाती है। विरहोत्कण्ठिता नायिका विरह से उत्पीड़ित है। वह अपना संदेश अपने प्रियतम तक ‘मेघदूतम’ के अनुरूप भेजती है।
स्वाधीनभर्तृका अपने रूप और अपनी बुद्धिमानी से नायक को चंगुल में दास की भांति रखती है। कलहान्तरिता नायिका अपने प्रियतम पर कलह (शक) कर पछताती है और नायक से रूठ जाती है। प्रोषितभर्तृका नायिका का प्रियतम परदेस में है और उसके विरह में दुखी होती है। अभिसारिका नायिका रात के अंधेरे में घर से चुपचाप निकलती है और प्रियतम से मिलने के लिए कई तरह की मुश्किलें पार करती है। विप्रलब्धा नायिका का प्रिय उसे वचन देकर भी संकेत स्थल पर नहीं आता है। नायिका अपने प्रिय के वचन भंग करने तथा संकेत-स्थल पर न मिलने के कारण दुखी हो जाती है।