मजदूर मां का गरीब बेटा गांव के स्कूल में पढ़कर बना डॉक्टर, पढ़िए NEET क्वालिफाई करने वाले बलराम की कहानी

भिलाई. CG Prime News. दुर्ग संभाग के कबीरधाम जिला मुख्यालय से तीस किमी. दूर ग्राम खजरीकला के रहने वाले बलराम कुंजाम कोरोनाकाल में नीट क्वालिफाई करके न सिर्फ अपने गांव बल्कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के भी पहले डॉक्टर बनेंगे। पति की टीबी से भयानक मौत देखकर एक गरीब मां ने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का संकल्प लिया। तंग हालात ऐसे हैं कि दूसरे खेतों में आज भी मजदूरी करके किसी तरह परिवार का गुजर बसर चल रहा है। फिर भी अनपढ़ मां हथिसारिन बाई ने हार नहीं मानी और बेटे की पढ़ाई के लिए कर्ज तक ले लिया। मां के संघर्ष को देखकर बेटे ने भी जी तोड़ मेहनत की। अपने दूसरे प्रयास में नीट में 5095 ऑल इंडिया और छत्तीसगढ़ में 141 स्टेट रैंक लाकर गरीब परिवार का मान बढ़ा दिया। वन मंत्री मोहम्मद अकबर के गृह जिले के गांव के हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल में पढ़कर नीट क्रैक करने वाले बलराम कहते हैं कि दुनिया में असंभव नाम का कोई शब्द ही नहीं हैं। चाहे आपके हालात कितने भी बुरे क्यों न हो, अगर मन में दृढ़ इच्छाशक्ति है तो गांव का बच्चा दुनिया के किसी भी जगह पर सफलता के परचम गाड़ सकता है।

नहीं पता था कैसे बनते हैं डॉक्टर
डॉक्टर बनने की इच्छा तो उसी दिन से थी जिस दिन अपने पिता को टीबी के कारण अकाल मौत के गाल में समाते हुए देखा। बलराम ने बताया कि बारहवीं सीजी बोर्ड में 87.4 प्रतिशत अंक लाने के बाद भी उन्हें नहीं पता था कि डॉक्टर बनने के लिए किस परीक्षा में बैठना पड़ता है। घर के आर्थिक हालात भी अच्छे नहीं है इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाया। थक हारकर बीएससी में एडमिशन ले लिया। वहां एक दिन दोस्तों से पता चला कि नीट एग्जाम के जरिए एमबीबीएस में सलेक्शन होता है। उसी दिन कॉलेज छोड़कर घर में नीट की तैयारी करना शुरू कर दिया। पहले प्रयास में असफलता हाथ लगी। बाद में किसी तरह मां ने कर्ज लेकर आगे की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए। जिसके बाद भिलाई में एक साल हॉस्टल में रहकर तैयारी की। दूसरे प्रयास में अच्छे रैंक के साथ अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।

ग्रामीण परिवेश से होने के कारण होती थी झिझक
वन मंत्री मोहम्मद अकबर के गृह जिले से ताल्लुक रखने वाले बलराम ने बताया कि पहली बार गांव से निकलकर जब शहर में पढ़ाई के लिए रूख किया तो बहुत झिझक होती थी। कैसे शहर के बच्चों के साथ कॉम्पीटिशन कर पाऊंगा। जैसे-जैसे मेहनत करते गया खुद पर भरोसा हो गया कि गांव का बच्चा भी डॉक्टर बन सकता है। तैयारी के दौरान कई बार फीस भरने के पैसे नहीं होते थे तब हायर सेकंडरी स्कूल धरमगढ़ के टीचर मोहन धुव्रे जो रिश्ते में जीजा हैं, उन्होंने आर्थिक मदद की। वहीं सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज भिलाई के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने भी कोचिंग की फीस आधी कर दी। उनकी काउंसलिंग और पैरेंटिंग के कारण नीट की अच्छी तरह तैयारी कर पाया।

कार्डियोलॉजिस्ट बनकर करना चाहते हैं गरीबों की सेवा
बलराम एमबीबीएस के बाद कार्डियोलॉजिस्ट बनकर गरीबों की सेवा करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि वे उस गांव से ताल्लुक रखते हैं जहां आज भी केवल प्रायमरी स्कूल तक की शिक्षा मिलती है। आदिवासी बाहुल्य होने के कारण लोगों में शिक्षा और जागरूकता की भी कमी है। कई बच्चे टैलेंटेड होते भी प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी के अभाव में गांव में ही दबकर रह जाते हैं। ऐसे बच्चों के लिए आगे चलकर कैरियर गाइडेंस की दिशा में काम करना चाहते हैं। साथ ही अपने छोटे भाई को भी डॉक्टर बनाना चाहते हैं। बलराम कहते हैं मेहनत से इंसान हर मुकाम हासिल कर सकता है। इसलिए सिर्फ अपनी मेहनत पर भरोसा करो।

सचदेवा के एक्स स्टूडेंट डॉ. वेद प्रकाश की कहानी से मिली प्रेरणा
बलराम ने बताया कि बीएससी की पढ़ाई छोडऩे के बाद उन्हें नीट की कोचिंग कहां से करनी है, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। ऐसे में दोस्त के भाई से पता चला कि सचदेवा में अच्छी पढ़ाई होती है। यहां आकर जब चिरंजीव जैन सर से मुलाकात हुई तो लगा कि अब यहां से डॉक्टर बनकर ही निकलूंगा। उन्होंने न सिर्फ फीस आधी की बल्कि हर उस जगह पैरेंट्स बनकर खड़े हुए जहां मुझे जरूरत थी। गेस्ट सेशन में सचदेवा से पढ़े डॉक्टर वेद प्रकाश की कहानी जानकारी काफी प्रेरणा मिली। उन्होंने जिस विषम आर्थिक हालत में पढ़ाई की मैं भी कुछ इन्हीं हालातों से गुजर रहा था। जब वे कर पाए तो मैं क्यों नहीं कर सकता ये सवाल मन में आया। उसी दिन से दोगुनी मेहनत करना शुरू कर दिया।

सफलता मचाती है शोर

दो साल के ड्रॉप के बाद भी डॉक्टर बनने का सपना संजोए हर दिन कोचिंग क्लास जाता था। एक दिन चिरंजीव जैन सर ने हमारी काउंसलिंग करते हुए कहा कि मेहनत इतनी खामोशी से करो कि आपकी सफलता शोर मचा दे। ये बात दिल पर लग गई। इसी बात को गांठ बांधकर दिन रात मेहनत करने लगा। कोचिंग में हर डाउट को बड़ी आसानी से टीचर्स क्लीयर करते हैं। बार-बार पूछने में भी झिझक नहीं होती थी। शायद इसी वजह से सब्जेक्ट की तैयारी अच्छे से हो पाई। पढ़ाई के साथ-साथ जब आप घर से बाहर होते हो तो एक मैंटली सपोर्ट की जरूरत होती है। जैन सर और सचदेवा के सारे टीचर्स फैमिली की तरह हर सुख-दु:ख में साथ रहे। ये बात बाकी कोचिंग से सचदेवा को अलग बनाती है।

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