कोरोना के कहर के बीच पोला त्यौहार पर बाजारों में दिखी रौनक, तो घरों में बना छत्तीसगढ़ का पारंम्परिक व्यंजन

जगदलपुर@cgprimenews. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पर्वों में से एक भाद्रपद अमावस्या को मनाया जाने वाला पोला पर्व आज कोरोना महामारी के चलते सादगी से मनाया जाएगा। बैलों की पूजा के बाद बच्चे मिट्टी के बैल दौड़ाएंगे। इसके एक दिन पहले से ही बाजारों में मिट्टी के बैल बिकने लगे हैं। मंगलवार को शहर के बाजारों में कुम्हारों से मिट्टी के मनमोहक बैल खरीदने बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। बाजार में बैल जोड़ी 50 से 60 रूपए में बिकी।

  • बैलों का सम्मान करने मनाते हैं पर्व पोला पर्व के दौरान खरीफ फसल की तैयारी हो चुकी होती है। खेतों में निंदाई, गुड़ाई का काम निपट जाता है। ऐसी मान्यता है कि पोला पर्व के दिन अन्ना माता गर्भ धारण करती हैं, धान के पौधों में दूध भरता है। बैलों को सम्मान देने के उद्देश्य से किसान पोला पर्व पर बैलों की पूजा करते हैं। रात्रि में गांव के पुजारी, मुखिया, गांवों की सीमा में स्थापित देवी-देवता की पूजा करते हैं।
  • इन व्यंजनों का लगेगा भोग
    देवी, देवता और बैलों को गुड़हा, चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। भाद्रपद अमावस्या को भगवान कृष्ण ने किया था पोलासुर का वध, इसलिए इस दिन का नाम पड़ा पोला।
  • बैलों का करेंगे श्रृंगार
  • किसान गौमाता और बैलों को स्नान कराकर श्रृंगार करेंगे। सींग और खुर यानी पैरों में माहुर, नेल पॉलिश लगाएंगे, गले में घुंघरू, घंटी, कौड़ी के आभूषण पहनाकर पूजा करेंगे।

Leave a Reply