निजी अस्पताल में ली आखिरी सांस, आज रात ही होगी तद्फीन
CG Prime News@भिलाई. इस्पात नगरी भिलाई की पहचान जामा मस्जिद सेक्टर-6 में पूरे 45 साल तक इमामत करने वाले पहले इमाम हाजी हाफिज अजमलुद्दीन हैदर (82) ने सोमवार दोपहर आखिरी सांस ली। पिछले कुछ दिनों से वह शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। उनके गुजरने की खबर से इस्पात नगरी में शोक व्याप्त है। मरहूम हैदर शहर के हर वर्ग और समुदाय के बीच जाना पहचाना नाम थे। रोजाना लोग उनके पास दुआएं करवाने के लिए पहुंचते थे।
भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट के सदर मिर्जा आसिम बेग और मरहूम इमाम साहब के बेटे असदुद्दीन हैदर ने बताया कि सोमवार रात में ही उन्हें कब्रिस्तान हैदरगंज में सुपुर्दे खाक किया जाएगा।
इसके पहले ईदगाह मैदान सेक्टर-6 में नमाज़ ए जनाजा रात तकरीबन 09 बजे पढ़ी जाएगी। मरहूम हाफिज अजमलुद्दीन हैदर अपने पीछे पत्नी, तीन बेटे और दो बेटियों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके इंतकाल की खबर मिलने के बाद शोकाकुल लोग उनके स्ट्रीट-24, क्वार्टर 7 बी, सेक्टर-2 स्थित निवास पहुंच रहे हैं।
22 साल की उम्र में बने हाफिजे कुरआन, 1970 से सेक्टर-6 में थे इमाम
29 दिसंबर 1942 को जन्मे हाफिज अजमलुद्दीन हैदर ने 1965 में 22 साल की उम्र में हाफिजे कुरआन-आलिम का दर्जा जामअे अरबिया इस्लामिया नागपुर से हासिल किया। इसके बाद वह अपने वालिद हाजी हाफिज अफजलुद्दीन हैदर के पास आ गए, जो कि जामा मस्जिद दुर्ग में पेश इमाम थे। कुछ ही दिन बाद वह भिलाई की गौसिया मस्जिद कैम्प-1 में इमाम हो गए। यहां इमाम रहते हुए भिलाई में ईदुल फित्र व ईदुल अजहा की नमाज पढ़ाने के लिए जामा मस्जिद सेक्टर-6 की इंतेजामिया कमेटी उन्हें बुलाया करती थी। क्योंकि उस दौर में सेक्टर-6 मस्जिद में स्थाई तौर पर इमाम की कोई व्यवस्था नहीं थी।
मस्जिद की खिदमत कुबूल की, तनख्वाह नहीं लिया
भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट सेक्टर-6 के बुलावे पर उन्होंने 11 जनवरी 1970 से यहां स्थाई तौर पर इमामत शुरू की। सन 2000 में इमाम अजमलुद्दीन हैदर हज्जे बैतुल्लाह के लिए गए। वहां से लौटने के बाद भी मस्जिद में इमामत करते रहे, लेकिन बाद में बाईपास सर्जरी होने की वजह से सेहत को लेकर दिक्कतें आने लगी। ऐसे में मस्जिद कमेटी को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया, लेकिन कमेटी वालों की उन्हें बने रहने के लिए कहा। इस पर उन्होंने मस्जिद की खिदमत तो कुबूल कर ली, लेकिन इसके बाद तनख्वाह लेने से इनकार कर दिया। फिर दिसंबर 2015 से उन्होंने सेहत को देखते हुए मस्जिद से इमामत का ओहदा छोड़ दिया। इसके बाद से वह मस्जिद के पास ही सेक्टर-2 में रहते हुए कौम की खिदमत में लगे हुए थे।