– ट्रेन यात्रा की खुशी ऐसी जैसे चांद पर पहुंचने राकेट का सफर हो
दुर्ग@CG Prime News. राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए कोंडागांव के मर्दापाल, राणापाल, हडेली जैसे अंदरूनी गांवों के बच्चों ने कई मुकाबलों में गोल्ड मेडल जीता, लेकिन इन्हें उससे ज्यादा खुशी तब मिली जब उन्होंने ट्रेन देखा। इन बच्चों ने प्रशासनिक अधिकारियों से ट्रेन देखने की इच्छा जाहिर की और ट्रेन के सफर का लुत्फ लिया। पहली बार ट्रेन में सफर कर काफी प्रफुल्लित हुए। बच्चों का उत्साह बढ़ाने मौके पर पहुंचे दुर्ग एसएसपी बीएन मीणा का धन्यवाद किया और उनका आशीर्वाद लेते हुए ट्रेन पर चढ़े, इसके बाद सकुशल दल्लीराजहरा लोकल ट्रेन का लुत्फ उठाया।

उल्लेखनीय है कि इन दिनों राज्य स्तरीय शालेय खेल प्रतियोगिता में शामिल होने बस्तर जोन के सौ से ज्यादा खिलाड़ी भिलाई पहुंचे है, लेकिन इनमें से दो दर्जन से ज्यादा ऐसे है जो पहली बार अपने गांव से निकलकर बस में सवार हो यहां तक पहुंचे, खासकर जूडो में शामिल होने आए कोंडागांव जिले के नक्सल प्रभावित गांवों के इन नन्हे बेटे और बेटियों ने न तो कभी ट्रेन देखी और न ही आसमान में प्लेन को उड़ते देखा था। पिछले तीन दिनों से वे बस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके कोच उन्हें ट्रेन दिखाने ले जाएंगे और कब उन्हें ट्रेन में बैठने का मौका मिलेगा।
बच्चों ने अपने अनुभव साझा किए
दुर्ग से मरोदा स्टेशन तक ट्रेन सफर करने के बाद रंजीता ने बताया कि मैंने पहली बार रेल की पटरी देखी और इस पर चलती हुई ट्रेन देखी। मैं इस पर बैठकर घूम भी सकती हूँ यह सोचकर ही मैं खुश हो गई। जब मैंने इसमें यात्रा की तो मुझे बहुत सुखद एहसास हुआ। सहायक आयुक्त प्रियंवदा रामटेके ने बताया कि कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने निर्देशित किया था कि स्पर्धा के बाद इन बच्चों की मनचाही चीज पूरी कर दी जाए। बच्चों ने बताया कि ट्रेन देखनी है। कुछ बच्चों ने कहा कि ट्रेन में यात्रा करनी है। कलेक्टर ने कहा कि इन 40 बच्चों को स्टेशन घूमाएं, ट्रेन दिखायें और दुर्ग से मरौदा तक का संक्षिप्त सफर कराया गया।

17 गोल्ड जीत चुके है बच्चे
बच्चों के कोच जय सिंह ने बताया कि बच्चों ने जूडो प्रतियोगिता में शानदार करतब दिखाये और 17 गोल्ड स्पर्धा में जीते। बच्चों की इच्छा थी कि ट्रेन देखें। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हें ट्रेन में यात्रा करा दी।रामटेके ने बताया कि बच्चों में ट्रेन पर चढ़ने को लेकर अद्भुत ललक दिखी जैसे वो चांद पर जाने के लिए राकेट से निकलें हों। उनकी उमंग देखकर बहुत अच्छा लगा। पूरे ट्रेन के सफर के दौरान बच्चे अपने लोकगीत जोर-जोर से गाते रहे। बच्चों के इस उमंग को देखते हुए ऐसा लगा कि कार्यक्रम सार्थकता हो गया।
शंकराचार्य विद्यालय के समीप ठहरे हैं बच्चे
इन बच्चों को भिलाई के हुडको स्थित श्री शंकराचार्य विद्यालय के नजदीक ठहराया गया था। ट्रेन जब हार्न बजाते हुए गुजरी तो बच्चे झट से रूम के बाहर दौड़ पड़े कि बस एक बार ट्रेन देखने मिल जाए पर ट्रेन तो वहां से बहुत दूर से गुजर रही थी, इसी बीच आसमान पर प्लेन भी दिखाई दिया तो वे तालियां बजाकर उछलने लगे। शहरी बच्चों के लिए भले ही यह नई बात न हो पर हमारे बस्तर के गांव से आए इन आदिवासी बच्चों के लिए आज भी शहर की जिंदगी नई दुनिया जैसी है।
