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sawan over

सोमवार को पूर्णमासी के साथ ही प्रेम, प्रीत, स्नेह और उल्लास के मास सावन की विदाई हो जाएगी। इसके साथ ही पीहर में बैठी उन नव वधुओं की विदाई ससुराल के लिए होने लगेगी जिनका शादी के बाद इस बार पहला सावन था। नव वधुओं का पहले सावन में ससुराल में रहना वर्जित बताया गया है। इसके पीछे जो किवदंती प्रचलित है वह यह है कि पहले सावन में नई बहू का ससुराल में रहना सास के लिए भारी होता है। इस किवदंती का कभी तार्किक विश्लेषण हुआ नहीं, सो जो पहले से चल रहा है, वह अब भी चल रहा है। इसे लीक पीटना भी कहा जा सकता है।

बुजुर्गों ने बनाया है रिवाज

नई बहू के पहले सावन में ससुराल में नहीं रहने के बारे में कई बुजुर्गों से बात की तो सभी का यही जवाब था कि सास-बहू में झगड़ा नहीं हो, इसलिए नई बहू को पहले सावन में पीहर भेजा जाता है। पहले सावन में झगड़ा नहीं हो तो बाकी जीवन में सास-बहू में झगड़ा नहीं होता।

प्राचीन काल में यह प्रथा इसलिए बनाई गई थी कि ससुराल में बहुओं को बहुत काम करना पड़ता था। नई बहू के लिए पहला सावन खास होता है। ज्यादा काम होने पर स्वभाविक है सास से उसकी बोलचाल हो जाए और घर में क्लेश होने लगे। ऐसे में यदि वह सावन के दिनों अपने मायके चली जाती थीं तो कुछ आराम मिल जाता और सास के साथ मधुर संबंध बने रहते।

क्या है नई बहू के मायके जाने की वजह

  • शादी के बाद पहले सावन में बहू के मायके जाने पर दोनों परिवारों के बीच मेलजोल बढ़ता है। मायके और ससुराल के बीच सामंजस्य की स्थिति बनी रहती है।
  • सावन में नव विवाहिताएं मायके आकर अपने परिवार और सहेलियों के साथ समय बिता सकती हैं। यह प्रथा उन नव विवाहिताओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो शादी के बाद मायके से काफी दूर रहती हैं।
  • बेटी से घर का भाग्य जुड़ा हुआ होता है, ऐसे में इस महीने में वो मायके जाती है तो उसका भाग्य घर के भाग्य को नियंत्रित करता है। बेटी अपने घर जाकर वहां खुशियां लाती है ऐसा माना जाता है।
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये भी माना जाता है कि शादी के बाद पहला सावन मायके में रहने से पति-पत्नी के संबंध आजीवन सुखमय रहते हैं। दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है।
  • मान्यता ये भी है कि जब शादी के बाद बेटी पहले सावन में घर आए, तो उसके हाथों से तुलसी का पौधा अवश्य लगवाएं।